...जिंदगी अब भी सफर मे है!!!
तू लाख मुझ से दूर सही
पर मेरी नज़र में है
बेशक मेरी ज़िंदगी की कश्ती
आज भँवर में है
बहारें कब की बीत गईं
चरागें भी हैं बुझी हुई
अंधेरा ही है हर तरफ
अब पत्ते भी कहाँ इस शज़र में हैं
तमन्नाओं की फेहरिस्त में
अब ख्वाब भी तो कोई शामिल नही
बदले हैं हम बस इतना ही की
अब बदलाव भी हमारे असर में है
मुफ़लिसी ने हमसे यूँ नाता है जोड़ा
रिश्तों की झोली भी खाली पड़ी है
भाई भी मेरा ये भुला है कबसे-
"एक भाई भी मेरा इस घर मे है"
तन्हाई के इस आलम में
बस मैं ही खुद मेरा हूँ
तेरी यादों कर हर कतरा
मेरे खून-ए-जिगर में है
रंजिश की बातें कुछ वैसी नही है
मिलता हूँ सबसे अब भी मुस्कुरा कर
बस कबूल नही उसको मेरा मुस्कुराना
एक रक़ीब भी ऐसा इस शहर में है
बड़े अरमानों से पाला था मुझको
के घर का बोझा भी मैं उठाऊं
मगर तु ने मुझको बनाया यूँ काफ़िर
मेरा भी बोझा अब उनके सर में है
कुम्हलाया हूँ मैं तो खिलने से भी पहले
जवानी में ही बिखरा पड़ा हूँ
सब की नज़र में तूने झुकाया ही इतना
की दर्दों का एक गुच्छा मेरे कमर में है
तबियत थी तेरी
था दिल तेरा भी आया
फिर नज़रें चुराना तुझे क्यों कर आया?
क्यूं आया फ़र्क़ इतना
तेरी नज़र में है?
दीमकें कब की चाट गई
ना जाने किसकी बद्दुआ थी
मैं अपने 'घर' पहुंच गया
बस ये जिस्म ही बाकी अब सफर में है
...Dev
Suryansh
21-Oct-2022 07:10 AM
Wahhhh Outstanding,, बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना
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Akassh_ydv
22-Oct-2022 11:16 AM
तहे दिल से शुक्रगुजार हैं हम आपके पूजा जी।
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Sachin dev
17-Oct-2022 04:45 PM
Nice 👌🏻
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Akassh_ydv
22-Oct-2022 11:16 AM
हृदय से आभार सचिन जी
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Reena yadav
16-Oct-2022 03:45 PM
👍👍🌺
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Akassh_ydv
22-Oct-2022 11:16 AM
रीना जी शुक्रिया
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